कवि नहीं हूँ फिर भी लिख रहा हूँ कविता नहीं अपनी पीड़ा को रच रहा हूँ कवि नहीं हूँ फिर भी लिख रहा हूँ कविता नहीं अपनी पीड़ा को रच रहा हूँ
हाँ वो बंद खिड़की की वो दरार आज भी याद दिलाती है मुझे अपने बीते लम्हों की दास्तां हाँ वो बंद खिड़की की वो दरार आज भी याद दिलाती है मुझे अपने बीते लम्हों की दा...
प्रेमियों को तो प्रेम धुन लगी है और समाज को नियमों की पड़ी है प्रेमियों को तो प्रेम धुन लगी है और समाज को नियमों की पड़ी है
लफ्ज़ न कहते जो बात, नज़रों से दिल में उतरते। कुछ तुम कहते ,कुछ मैं सुनता, कुछ मैं क लफ्ज़ न कहते जो बात, नज़रों से दिल में उतरते। कुछ तुम कहते ,कुछ मैं सुनता,...
तुम्हारी बेरुखियों से , रिश्ता कुछ खास हो गया है l तुम्हारी बेरुखियों से , रिश्ता कुछ खास हो गया है l
पाखंडी और मुर्ख है वो समाज जो एक नारी के चीर हरण पर चुप रहा चुप रहा हर बार किसी सीता पाखंडी और मुर्ख है वो समाज जो एक नारी के चीर हरण पर चुप रहा चुप रहा हर बार...